मुख्य कारण
आर्थिक कारण
- नई भूमि राजस्व नीति के तहत भारी कराधान
- भारतीय सामानों के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण नीति
- ऋणदाताओं ने ऋण का भुगतान न करने के कारण किसानों को उनकी भूमि से बेदखल करना
- विदेशी वस्तुओं के आयात ने भारतीय सामान के बाजारों को बर्बाद कर दिया
- स्थानीय शासक कमज़ोर हो गए और उन्होंने कलाकार और शिल्पकारों को संरक्षण देना बंद कर दिया इसीलिए इन कलाकारों और शिल्पकार को दूसरे काम देखने पड़े भारतीय हस्तशिल्प की बर्बादी ने कृषि पर बोझ बढ़ाया
- आधुनिक तर्ज पर औद्योगीकरण की अनुपस्थिति थी
- कम्पनी की लालची नीति और टूटे वादों के कारण कम्पनी की अवमानना हुई और राजनीतिक प्रतिष्ठा का नुक्सान हुआ सहायक गठबंधन और व्यापक धन का सिद्धान्त की नीति के कारण स्थानीय शासकों में आक्रोश था
- कम्पनी के प्रशासन विशेष रूप से पुलिस और अधिकारियों और निचली अदालत के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार असंतोष का एक प्रमुख कारण था
- भारत में ब्रिटिश ध्वज का अनुसरण करने वाले ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर भारतीयों द्वारा संदेह की दृष्टि से देखा गया
- सामाजिक धार्मिक सुधार जैसे सती प्रथा को समाप्त करने विधवा विवाह को समर्थन और महिलाओं की शिक्षा के प्रयास को 1 बड़े वर्ग ने हस्तक्षेप के रूप में देखा
- पहला अफ़ग़ान युद्ध (1838-42 ) पंजाब युद्ध (1845-49 ) और क्रीमियन युद्ध (1854-56)
- इनमें अंग्रेजों को इतना मज़बूत नहीं देखा गया और महसूस किया गया कि नया हराया जा सकता है
- सेवा की शर्तों धार्मिक विश्वासों के साथ टकराव में आ गई जाति और संप्रदाय के निशान पहनने पर प्रतिबंध
- भारतीय सैनिकों के लिए कोई भत्ता नहीं
- पदोन्नति में अंग्रेजो के पक्ष में भेदभाव था
- 1857 से पहले सिपाही विद्रोह का 1 लंबा इतिहास रहा है
- आटे में हड्डी के बुरादे के मिश्रण के बारे में 1 ख़बर थी और यह बात फैल गई कि नई रॉयल इनफील्ड राइफल के कारतूस में लिपटा कागज बीफ या स्वर्गीय चर्बी से बनाया गया है इससे असंतोष बढ़ गया जो विद्रोह में बदल गया
- एक युवा सिपाही 34 वीं नेटिव इंफैंट्री के मंगल पाण्डेय ने आगे जाकर बैरकपुर में अपनी इकाई के प्रमुख सार्जेंट पर गोलीबारी की उन्हें 8 अप्रैल को फांसी दी गई
- अन्य रेजीमेंट ने भी कारतूसों का विरोध किया इसने मेरठ में पैदल भारतीय सैनिकों को बीच एक सामान्य विद्रोह को जन्म दिया
- अगले दिन 10 मई को उन्होंने अपने कैद किये गये साथियों को रिहा कर दिया सैन्य अधिकारियों की हत्या की और विद्रोह को उकसाया वे सूर्यास्त के बाद दिल्ली के लिए रवाना हुए
- दिल्ली जल्द ही जोरदार विद्रोह केंद्र बन गया था देश के नेतृत्व के लिए अंतिम मुगल राजा का स्वतः चुनाव इस तथ्य की मान्यता थी कि मुगल वंश का लंबे शासनकाल भारतीय राजनीतिक एकता का पारम्परिक प्रतीक बन गया था
- विद्रोहियों द्वारा दिल्ली पर कब्जा करने के 1 महीने के भीतर विद्रोह देश के विभिन्न हिस्सों में फैल गया
- सिपाहियों का विद्रोह नागरिक आबादी के विद्रोह एक थी विशेष रूप से उत्तर पश्चिमी प्रांतों और अवध में
- किसान कारीगरों दुकानदारों दिहाड़ी मजदूरों जमींदारों धार्मिक पंडितों पुजारियों को सिविल सेवकों द्वारा विद्रोह में व्यापक भागीदारी थी जिन्हें इसे उसकी ताकत के साथ साथ 1 लोकप्रिय विद्रोह का चरित्र
- दिल्ली में नाममात्र का नेतृत्व बहादुरशाह जफर का था लेकिन असली कमांडर जनरल बख्तखां थे
- विद्रोह के नेतृत्व की श्रंखला में सम्राट बहादुरशाह साथ सबसे कमज़ोर कड़ी थे उनके कमज़ोर व्यक्तित्व बुढ़ापे और नेतृत्व के गुणों की कमी ने विद्रोह में राजनीतिक कमज़ोरी पैदा की
- कानपुर में नाना साहब थे जो अन्तिम पेशवा बाजीराव सेकेंड के दत्तक पुत्र थे
- नाना साहब ने कानपुर से अंग्रेजों को खदेड़ दिया खुद को पेशवा घोषित किया बहादुर शाह को भारत का सम्राट स्वीकार किया और खुद को उनका गवर्नर घोषित किया
- व्हीलर ने 27 जून 1857 को आत्म समर्पण कर दिया और उसी दिन उसकी हत्या कर दी गई थी
- बेगम हजरतमहल लखनऊ पर नियंत्रण स्थापित किया जहां 4 जून 1857 को विद्रोह शुरू हो गया ब्रिटिश रेजीडेंट हेनरी लॉरेंस कुछ यूरोपियन और कुछ 100 वफादार सिपाहियों ने रेजीडेंसी में शरण ली रेजीडेंसी भारतीय विद्रोहियों द्वारा घेर ली गई थी और घेराबंदी के दौरान सर हेनरी को मार दिया गया था मार्च 1858 में शहर को अंततः अंग्रेजों ने वापस प्राप्त कर लिया
- बरेली में रुहेलखंड के पूर्व शासक के वंशज खान बहादुर को कमान में रखा गया था अंग्रेजों द्वारा दी जा रही पेंशन से संतुष्ट नहीं थे उन्होंने 40000 की सेना एकत्रित की रंगरेजों को कड़ी टक्कर दी
- बिहार में विद्रोह का नेतृत्व जगदीशपुर के जमींदार कुंवर सिंह ने किया
- फैजाबाद में मौलवी अहमदुल्ला विद्रोह के 1 उत्कृष्ट नेता थे
- विद्रोह की सबसे उत्कृष्ट नेता रानी लक्ष्मीबाई थीं जिन्होंने सिपाहियों का नेतृत्व झांसी में किया था उनका युद्ध का नारा था मैं अपनी झाँसी नहीं दूंगी
- कानपुर में हार के बाद वह नाना साहेब की करीबी सहयोगी तात्या टोपे से जुड़ गई झांसी की रानी और तात्या टोपे ने ग्वालियर की ओर कूच किया जहां उनका स्वागत भारतीय सैनिकों ने किया सिंधिया स्थानीय शासक ने हालांकि अंग्रेजों का साथ देने का फ़ैसला किया
- 20 सितम्बर 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया बहादुर शाह को कैदी बना लिया गया और उन्हें रंगून निर्वासित कर दिया गया साहि राजकुमारों को पकड़ लिया गया और उनकी हत्या कर दी गई
- दिल्ली के पतन के बाद विद्रोह केन्द्र बिन्दु गायब हो गया
- नानासाहेब कानपुर में हार गए और नेपाल भाग गए
- झांसी की रानी की मृत्यु जून 1858 में युद्ध के मैदान में हुई थी
- 1859 तक कुंवर सिंह वक़्त कहाँ बरेली में खान बहादुर खान राव साहब( नानासाहब के भाई) और मौलवीय अहमदुल्ला सभी की मृत्यु हो गई जबकि अवध की बेगम को नेपाल में छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा
- 1859 के अंत तक भारत पर ब्रिटिश अधिकार पूरी तरह से फिर से स्थापित हो गया था
- अखिल भारतीय भागीदारी अनुपस्थित थी
- सभी वर्ग शामिल नहीं हुए
- कमज़ोर हथियार
- कमज़ोर संगठन
- कोई एकीकृत विचारधारा न होना
- आरसी मजूमदार" न तो पहला न ही स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय युद्ध "
- सावरकर "स्वतन्त्रता के लिए युद्ध "
- Lawrence or silly "केवल सैन्य विद्रोह "
- हम कह सकते हैं इसने राष्ट्रवाद का बीज बोया
- ब्रिटिश संसद ने 2 अगस्त 1858 को भारत की बेहतर सरकार के लिए 1 अधिनियम पारित किया देश के प्रशासन की प्रत्येक ज़िम्मेदारी ब्रिटिश क्राउन द्वारा ले ली गई और कम्पनी शासन को समाप्त कर दिया गया रानी की उद्घोषणा 1 नवम्बर 1858 को जारी की गई
- रानी के उद् घोषणा के अनुसार राज्य अरण और विस्तार का युग समाप्त हो गया और अंग्रेजों ने देशी राजाओं की गरिमा और अधिकारों का सम्मान करने का वादा किया था
- भारतीय राज्यों को ब्रिटिश क्राउन का प्रभुत्व स्वीकार करना था भारत के लोगों को धर्म की स्वतंत्रता का वादा किया गया था
- उद्घोषणा ने सभी भारतीयों को क़ानून के तहत सामान और निष्पक्ष सुरक्षा का वादा किया
- पुराने भारतीय अधिकारों रीति रिवाजों और प्रथाओं का कानून बनाने और प्रशासन करने के दौरान उचित सम्मान दिया जाएगा
- भारतीय सैनिकों की संख्या में भारी कमी आई यहां तक कि यूरोपीय सैनिकों की संख्या में वृद्धि हुई
- सेना को नागरिक आबादी से दूर रखने का प्रयास किया गया
- सेना और तोपखाने विभाग में सभी उच्च पद यूरोपीय लोगों के लिए आरक्षित थे
- इस प्रकार सुधारों का युग समाप्त हो गया
- फूट डालो और राज करो की नीति 1857 के विद्रोह के बाद शुरू हुई
- 1858 की रानी की उद्घोषणा के अनुसार 1861 का भारतीय सिविल सेवा अधिनियम पारित किया गया
- ब्रिटिश ने भारतीय समाज की पारम्परिक संरचना के बिल्कुल हस्तक्षेप न करने पर जोर दिया
- इसने कम्पनी के प्रशासन और उसकी सेना की कमियों को उजागर किया भारतीयों के लिए
- 1857 के विद्रोह का स्वतंत्रता के संघर्ष पर 1 बड़ा प्रभाव पड़ा
- यह लोगों और सिपाहियों के शोषण और समस्याओं के चलते सामने आया
- दोनों पक्षों द्वारा किये गये संवेदनहीन अत्याचारों को भारतीय बुद्धिजीवियों को झकझोर कर रख दिया