History Of kohinoor कोहिनूर का इतिहास और अभिशाप

Era Sharma
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 कोहिनूर दुनिया के सबसे बड़े और प्रसिद्ध हीरे में से एक है जिसकी कीमत आज भी लगाना संभव नहीं है 

    बाबर ने जब कोहिनूर को अपने हाथ में लिया तो उसने इसकी कीमत पूरी दुनिया को एक समय खाना खिलाये जाने के बराबर बताई  वहीं जब नादिर शाह ने कोहिनूर को देखा तो उसने कहा कि यदि कोई व्यक्ति चारों दिशाओं में एक - एक पत्थर फेंके और एक पत्थर ऊपर की ओर फेंके तो उस स्थान को सोने से भर दे तो तो ये कोहिनूर की कीमत से बहुत ही कम होगा 

     कोहिनूर के साथ एक  दिलचस्प बात ये जुड़ी हुई है किसी आज तक न तो बेचा गया और न ही किसी के द्वारा खरीदा गया आज तक कोहिनूर को जीता गया छीना गया या उपहार के रूप में दिया गया है 

          इतिहासकारों के अनुसार आंध्र प्रदेश के गुंटूर से निकले इस हीरे का सफर काकातीय साम्राज्य से शुरू होकर खिलजी मुगल पार्शियन अफ़ग़ान और सिख राजाओं से होते हुए बेटी सर तक गया है । 186 केरट के इस बेशकीमती पत्थर को वंशधर वंश इसे अपनी शान माना और इसे हासिल करने के लिए कई सारी तरकीब अपनाई कई अन्य कीमती पत्थरों की तरह कोहिनूर के साथ भी कई रहस्य अभिशाप और दुर्भाग्य जुड़े हुए हैं जिसके कारण ब्रिटिश राजपरिवार की भी महिला शासकों ने इसे  पहनने का फैसला किया 


       कोहिनूर का एक जटिल इतिहास रहा है जो इतिहासकारों के बीच मतभेद का कारण रहा है कुछ इतिहासकारों का मानना है कोहिनूर का वर्णन चौथी शताब्दी ईसापूर्व संस्कृत साहित्य में है जिसमें इसे एक  बड़े पत्थर के रूप में दर्शाया गया है , वहीं ज्यादातर इतिहासकार कोहिनूर की उत्पत्ति 11वी  से 13 वीं सदी में दक्षिण भारत की गोलकुंडा खान से मानते हैं जो उस समय काकातिया वंश के शासन के अधीन था कहा जाता है कि शुरुआत में कोहिनूर का वजन 793 कैरट था जिसे वारंगल स्थित एक काकातिया मन्दिर के ईष्ट देवता की आंख  की तरह सजाया गया था 

      चौदहवीं शताब्दी की शुरुआत में जब अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण भारत पर हमला कर रहे थे तो वारंगल में एक लूट के दौरान अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफ़ूर के हाथ ही यह हीरा आया इस तरह से कोहिनूर दिल्ली सल्तनत के हाथों में आया और इसके बाद के वंशजों के हाथों में आता गया ।



  सन्  1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराने के बाद दिल्ली सल्तनत का सारा धन बाबर के हाथों में गया जिसमें कोहिनूर भी शामिल था बाबर ने कोहिनूर को अपनी आत्मकथा बाबरनामा में बाबरी हीरा कहते हुए वर्णन किया कोहिनूर का पहला लिखित वर्णन या इसे मिलता है जिसमें बाबर ने इसे इतना मूल्यवान बताया कि इसके मूल्य से पूरी दुनिया को   एक दिन खाना खिलाया जा सकता है । बाबर की मृत्यु के बाद ये हीरा हुमायूं के पास गया और अगली पीढ़ियों से शाहजहाँ को मिला , शाहजहां  ने इस बेशकीमती नगीने को मयूर सिंहासन पर लगवाया जिसने उस सिंहासन की शान को और भी बढ़ा दिया । मयूर सिंहासन इतना बेशकीमती था कि इसे बनाने में 7 वर्ष का समय लगा और इसकी कीमत में 4 ताजमहल बन सकते थे 

      शाहजहां के बाद औरंगजेब के शासनकाल में फ्रेंच यात्री टैवेरनिएर का आना हुआ जब औरंगजेब ने कोहिनूर के बारे में बताया तो ट्रेवेनियर ने उसका चित्र बनाने की प्रार्थना की और इस तरह कोहिनूर का पहला स्क्रैच तैयार हुआ औरंगजेब के अपने शासनकाल के समय वेनिस के  जौहरी होर्टेंसो बोर्जिया को  कोहिनूर को तराशने का काम दिया  लेकिन और जिया ने लापरवाही पूर्वक कोहिनूर को अपर कट करते हुए कोहिनूर का वजन 793 से 186 केैरट कर दिया इस मूर्खता के लिए औरंगज़ेब ने बोर्जिया को उसकी मेहनत के लिए मेहनताना देने से मना कर दिया और उसके सारे पद भी छीन लिए 

     औरंगजेब के बाद जब भारत में मुगल शासन अपनी अंतिम साँसे ले रहा था तब मुगल शासक मोहम्मद शाह रंगीला के शासन के दौरान नादिर शाह ने 1739 में दिल्ली पर हमला किया , दिल्ली पर हमले के दौरान नादिर शाह की सेना के द्वारा किये गये कत्लेआम में हजारों निर्दोष व्यक्ति मारे गए और मुगल खजाने के साथ साथ मयूर सिंहासन और कोहिनूर की जुड़वा बहन दरिया- ए- नूर हीरा भी लूट लिया गया लेकिन कोहिनूर अब भी मुगल बादशाह मुहम्मद सारंगी लगे पास था और नादिर शाह को इसकी कोई खबर नहीं थी मोहम्मद शाह रंगीला कोहिनूर को अपनी पगड़ी में छुपाकर रखते थे जिसकी खबर बहुत कम लोगों को ही थी १एक अविश्वासी नौकर ने नादिर शाह से अपना नजदीकी बढ़ाने के लिए यह राज उसे बता दिया ,कोहिनूर को प्राप्त करने के लिए नादिर शाह ने 1 योजना बनाई जिसके लिए दिल्ली से लौटने से 1 दिन पहले नादिर शाह ने शाही दावत का आयोजन किया जिसमें मोहम्मद शाह को दिल्ली सिंहासन पर दोबारा बिठाया जाएगा इसके लिए नादिर शाह ने मोहम्मद शाह रंगीला को अपनी पगड़ी अदला बदली करने की पेशकश की जो उसकी दोस्ती को दिखाएगी ,मोहम्मद शाह रंगीला के पास कोई विकल्प नहीं था इसलिए उसने अपनी पगड़ी नादिर शाह के साथ बदल ली समारोह के बाद जब नादिरशाह अपने निजी कक्ष में गया तो उसने पगड़ी में से कोहिनूर हीरा निकाला इसकी खूबसूरती से प्रभावित होकर नादिर शाह ने इसका नाम कोहिनूर रखा पार्षद में को का मतलब पहाड़ और 9 का मतलब प्रकाश होता इस तरह नादिरशाह ने इसका नाम कोहिनूर दिया इसी समय नादिरशाह ने कहा "यदि कोई बलवान व्यक्ति चारों दिशाओं में एक एक पत्थर फेंके और एक  हवा में ऊपर की ओर उछाले इस खाली स्थान में अगर सोने से भर दिया जाए तो भी कोहिनूर की कीमत के बराबर नहीं होगा"


       क इसके कुछ समय बाद ही 1747 में नादिर शाह की ईरान  हत्या कर दी जाती है इसके बाद कोहिनूर नादिर शाह के जनरल अहमद शाह के पास चला गया आगे चलकर अहमद शाह ने अफ़ग़ानिस्तान में दुर्रानी साम्राज्य  की स्थापना की इसी वंश के शासक शाहशुजा के समय में जब अफ़ग़ानिस्तान में दुर्रानी शासन की पकड़ कमजोर पड़ने लगी तो उन्होंने पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह के पास शरण ली और अफ़ग़ानिस्तान का सिंहासन दुबारा प्राप्त करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह को कोहिनूर और दरिया -ए -नूर हीरा उपहार में दिया 

    महाराजा रणजीत सिंह ने इसे अपनी तलवार में जड़वाया जिसमें खास मौकों पर अपने साथ रखते थे । कोहिनूर अगले 20 वर्षों तक महाराजा रणजीत सिंह के पास रहा महाराजा रणजीत सिंह ने इसे उड़ीसा के जगन्नाथ धाम में देने की इच्छा जताई लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी 

      

will continue

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